शारदीय नवरात्रा में बड़हिया में विराजमान मां बाला दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी

लखीसराय
जनादेश न्यूज़ लखीसराय
लखीसराय (सुधाकर पांडे) : 156 फुट ऊंचाई वाले संगमरमर से बने मंदिर बड़हिया का यह मंदिर अपने आप में काफी विख्यात है। बहड़िया गांव का सिद्ध मंगलापीठ मां बाला त्रिपुरसुन्दरी जगदम्बा मंदिर आज भी लोक आस्था का केन्द्र बना हुआ है। बहड़िया गांव के इस मंदिर की मान्यता यहां के लोगों के मन में काफी है और इसी वजह से इस मंदिर में लोग अपनी मन्नतें लेकर यहां आते हैं और उनकी मुरादें पूरी भी होती हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो भी मां के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है,मां उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करती है।मां के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटा। इतना ही नहीं मां के दरबार में आकर मंदिर का नीर ग्रहण करने के बाद सर्पदंश पीड़ित को नया जीवन मिल जाता है। तभी तो दिन प्रतिदिन मां के दर्शनार्थ आनेवाल भक्तों की संख्या में दिन प्रतिदिन भारी वृद्धि हो रही है।
प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को जगदम्बा मंदिर में हजारों श्रद्धालु मां के समक्ष उपस्थित होकर और उनकी पूजा अर्चना कर मनवांछित फल पाते हैं। खासकर नवरात्रा के अवसर पर इस मंदिर में श्रद्धालुओं का मेला लगता है। दूर-दूर से लोग मां के दर्शनार्थ यहां आते हैं और मां के दर्शन कर तथा मत्था टेककर अपनी मनोकामना पूरा होने का आशीर्वाद पाते हैं।
स्थापना की कहानी
मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता है कि बड़हिया में सिद्ध मंगलापीठ की स्थापना भक्त शिरोमणि श्रीधर ओझा हिमालय की कंदरा में तपस्या करने के क्रम में मां वैष्णो देवी की स्थापना के बाद की थी।जनश्रुति के अनुसार मां वैष्णो देवी की स्थापना के पश्चात भक्त श्रीधर ओझा अपने पैतृक गांव बड़हिया आये।सम्पूर्ण भारत में श्रीधर ओझा की ख्याति एक साधक के रूप में फैल चुकी थी।उस वक्त बड़हिया ग्राम चारो ओर से नदियों तथा जंगलों से घिरा था।जिसमें विषधरों का प्रवास रहता था।सर्पदंश की चपेट में आकर लगातार लोगों की मौत हो रही थी।सर्पदंश से पीडि़त ग्रामवासी की लगातार मौत से बड़हिया और आसपास के लोग काफी दुखी थे।मां वैष्णो देवी की स्थापना के बाद बड़हिया लौटने पर ग्रामीणों ने भक्त श्रीधर ओझा से ग्रामीणों ने सर्पदंश से लोगों की रक्षा करने की गुहार लगाई।
ग्रामीणों की दारूण दशा से व्यथित श्रीधर ओझा ने अपनी साधना का प्रयोग कर लोक कल्याण हेतु मां आदिशक्ति की अराधना शुरू की।एक दिन रात्रि में मां आदिशक्ति ने स्वप्न में भक्त शिरोमणि को यह आदेश दिया कि ब्रहममुहुर्त में गंगा नदी की धारा में मिट्टी के खप्पर में आदिशक्ति मां अपने बाला रूप में ज्योति के रूप में बहते हुए आयेंगी।उन्हे जलधार से निकालकर गंगा की मिट्टी का पिंड बनाकर मां को स्थापित कर दिया जाये।साथ ही पिंड के पूर्व उत्तर कोण पर एक कूप खोदा जाय।उसी कूप के मंत्रशिक्त नीर को सर्पदंश पीडि़त को पिला दिया जाये।जिससे वह सर्पदंश के प्रभाव से मुक्त हो जायेगा।
निर्देशानुसार भक्त शिरोमणि श्रीधर ओझा ने ब्रहममुहुर्त में मिट्टी के खप्पर में बह रहे ज्योति को निकालकर गंगा की मिट्टी से गंगातट पर अवस्थित बड़हिया के टीले पर सिद्ध मंगलापीठ मां बाला त्रिपुरसुन्दरी,मां महाकाली,मां महालक्ष्मी और मां महासरस्वती कुल चार पिंडो की स्थापना की।कूप खनबाने के बाद पांचवां पिंड श्रीधर ओझा का पिंड स्थापित कर शर्त के मुताबिक श्रीधर ओझा ने गंगातट के विजयघाट पर जलसमाधि ले ली।श्रीधर ओझा के अनुयायी उसी समय से सर्पदंश पीडि़त को उसी कूप के जल को बताये गये मंत्र हरा हरा दोष विष निर्बिष दुहाई त्रिपुरसुन्दरी के आज्ञा श्रीधर ओझा के से मंत्रशिक्त कर पिला देते हैं।तदुपरांत उसी कूप के जल से पीडि़त व्यक्ति को स्नान कराया जाता है जिससे उसे सर्पदंश के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है और उसे नया जीवन मिल जाता है। 21वीं शदी होने के बाबजूद प्रत्येक दिन एक दर्जन से अधिक सर्पदंश से पीड़ित आते हैं और हंसते हुए घर लौटते हैं, जो यह आज भी देखने को मिलता है। तत्पश्चात पीडि़त एवं उनके परिजन माता के जयकारे लगाते हुए अपने अपने घरों को प्रस्थान करते हैं।
आज भी कृषि प्रधान बड़हिया में जब अनावृष्टि होती है तो मां की विशेष अराधना की जाती है और वर्षा हो जाती है।मान्यता है कि जब भी जनकल्याण की आवश्यकता होती है।मां अपना आर्शीवाद देने में कोताही नहीं करती है।प्रदेश और देश के कोने कोने से श्रद्धालु बड़हिया आकर मां से अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।1994 में सबसे उंचा देवी मंदिर सफेद संगमरमर पत्थर से निर्मित कराया गया है।करोड़ों की लागत से बने मंदिर पर सोने का कलश स्थापित है।भक्तों की बढ़ती भीड़ को देखते हुए उनकी सुविधा के लिए करोड़ों की लागत से भव्य धर्मशाला श्रीधर सेवाश्रम का निर्माण कराया गया है।
शारदीय एवं वासंतिक नवरात्रा में नौ दिनों तक राज्य एवं अंतरराजीय प्रदेश के माता भक्तों वैष्णवों देवी मंदिर की तरह पूजा अर्चना एवं दर्शन रेल मार्ग एवं सड़क मार्ग से आते जाते हैं।वहीं ट्रस्ट के सचिव जयशंकर उर्फ भादो बाबू, ने बताया कि हमलोगों का प्रयास है, बिहार सरकार इस मंदिर को पर्यटन स्थल घोषित कर दें तो राज्य सरकार को भी फायदा है साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा।
नवरात्रे को लेकर मंदिर की विशेष साज सज्जा की गयी है।पूरा मंदिर परिसर को फूलों से सजाया गया है।मंदिर के आसपास का क्षेत्र दुर्गा सप्तशती के मंत्रोच्चार तथा भक्तों के लग रहे जयकारों से गुंजायमान हो रहा हैं।मंदिर में उमड़ रही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुरूष एवं महिला स्वयंसेवकों द्वारा विशेष व्यवस्था की जा रही है।
जगदंबा स्थान के पुजारी विनय कुमार झा ने बताया कि इस मंदिर का स्थापना 400 वर्ष पूर्व पंडित श्रीधर ओझा जी द्वारा किया गया था इस मंदिर में निश्चल भाव से जो भक्त आते हैं उनकी सारी मनोकामना पूरी होती है।