छठ पर्व पर क्यों और कैसे करें सूर्य की आराधना

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जनादेश न्यूज़ नवादा
नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) : अर्थववेद के अनुसार, भगवान सूर्य ग्रहों और नक्षत्रों के स्वामी है। यह अपने तब और प्रकाश से तीनो लोक में ऊर्जा का संचार करते हैं।
वे उत्तरायणी, दक्षिणायण और विषुवत क्रमश: मंद, शीघ्र तथा समान गतियों से चलते हुए मकरादि राशियों में ऊंचे नीचे और समान स्थानों में जाकर दिन रात को बड़ा छोटा करते हैं वहीं दीक्षित का दी 5 राशियों पर चलते हैं तब प्रतिमा राशियों में एक-एक घड़ी कम हो जाती है और उसी गणित से दिन बढ़ने लगता है। इस प्रकार दक्षिणायण आरंभ होने तक दिन चढ़ता है और उसका उत्तरायण होने पर रात्रि होती है।
सूर्य देव की सात और महता पर संपूर्ण ब्रह्मांड की संरचना टिकी है भगवान सूर्य की उपासना के लिए चैत्र मास में भानु वैशाख मास में इंद्र,जेठ मास में रवि आषाढ़ मास में गर्भरीत सावन मास में बम, भादो मास में वरुण, आश्विन मास में सुवपरेखा, कार्तिक में दिवाकर, अगहन मास में मित्र, उसमें सनातन, माघ में अरुण और मलमास में पुरुष तपते हैं।
प्रत्येक वर्ष के कार्तिक एवं चैत्र मास के शुक्ल पक्ष षष्टी को तथा सत्यमी की उपासना करने पर सवागीण मनो कामना की सिद्धि प्राप्त होती है।
प्रत्येक मास के शुक्ल पष्टी रविवार के दिन नमक तेल व तामसी भोजन का त्याग करना चाहिए। इन तिथियों या दिनों में सूर्य उपासना करने से नेत्र रोग दूर हो जाते हैं।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की आष्टी तिथि, रविवार के दिन तथा सत्यमी तिथि भगवान सूर्य को प्रिय है। क्योंकि सत्यमी तिथि को ही भगवान सूर्य का अविभाव हुआ था। इस पर्व को छठ पर्व के रूप में मनाते हैं।
चार दिवसीय यह पर्व सनातन धर्मावलंबियों के लिए नियम-निष्ठा और स्वच्छता का कठोर पर्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को नहाए खाए के साथ पर्व शुरू होता है। इस दिन वर्ती समेत सभी लोग कद्दू और भारत का प्रसाद ग्रहण करते हैं उस के दूसरे दिन पंचमी को खरना होता है। भर्ती किसी नदी या तालाब किनारे या फिर घर में नया चूल्हा पर गुड़ का रसिया बनाती है। इस का भोग मां षष्टी को लगता है और उन्हें आध्य दिया जाता है। तत्पश्चात सभी प्रसाद ग्रहण करते हैं षष्टी तिथि एवं सतमी तिथि को नदी, तालाब, पोखर या फिर घर में बने गड्ढे में स्वच्छ जल भरकर वरती उसमें खड़ी होकर सूर्य देव को ध्यान करते हैं। षष्ठी तिथि के दिन शाम के समय डूबते सूर्य को और सप्तमी तिथि को उदयीमान सूर्य को पूजा होती है और उन्हें फल एवं पकवानों के साथ दूध हुआ जलसे अध्य दिया जाता है।
दोनों तिथियों में छठ पूजा होने के बावजूद षष्टी तिथि को प्रमुखता प्राप्त है क्योंकि इस दिन डूबते सूर्य की पूजा होती है।
सूर्य उपासना से विभिन्न दिशाओं की और क्रमश: मुख कर आराधना करने से बहुतेरे मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं।
यवा- भगवान सूर्य की पूरब दिशा की ओर मुख कर आराधना करने से उन्नति, पश्चिम मुख होकर आराधना करने से दुर्भाग्य का अंत, उत्तर मुख आराधना करने से धन की प्राप्त तथा दक्षिण मुख साधना करने से रोग शोक क्षय तथा शत्रु का नाश होता है।
धार्मिक ग्रंथों में संध्या कालीन छठ पर्व को संभवत: इसलिए प्रमुखता दी गई है ताकि संसार को यह ज्ञात हो सके कि जब तक हम डूबते सूर्य अर्थात बुजुर्गों को आदर सम्मान नहीं देंगे तब तक उगता सूरी अर्थात नई पीढ़ी उन्नत और खुशहाल नहीं होगी। संस्कारों का बीज बुजुर्गों से ही प्राप्त होता है। बुजुर्ग जीवन के अनुभव रूपी ज्ञान के कारण वेद पुराणों के समान आदर के पात्र होते है। इनका निरादर करने की वजय इनकी सेवा करो और उनसे जीवन का अनुभव रूपी ज्ञान प्राप्त करो यही छठ पूजा के संध्या कालीन सूर्य पूजा का तात्पर्य है।