लोकप्रिय बहुमत सरकार की मनमानी कार्रवाइयों का बचाव नहीं; न्यायिक समीक्षा के बिना लोकतंत्र का संचालन अकल्पनीय: CJI रमना

देश
जनादेश न्यूज नेटवर्क
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमाना ने कहा है कि एक लोकप्रिय बहुमत सरकार की मनमानी गतिविध‌ियों का बचाव नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य की सभी शाखाओं का अपनी संवैधानिक सीमाओं के भीतर काम करना महत्वपूर्ण है। विजयवाड़ा में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए, सीजेआई ने न्यायिक समीक्षा को “न्यायिक अतिरेक” के रूप में ब्रांड करने की प्रवृत्ति की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि न्यायिक समीक्षा के बिना देश में लोकतंत्र का कामकाज ‘अकल्पनीय’ होगा।
न्यायिक समीक्षा की शक्ति को अक्सर न्यायिक अतिरेक के रूप में ब्रांडेड करने की मांग की जाती है। इस तरह के सामान्यीकरण मिसगाइडेड हैं। संविधान ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका नामक तीन सह-समान अंगों का निर्माण किया। इस संदर्भ में न्यायपालिका को अन्य दो अंगों द्वारा उठाए गए कदमों की वैधता की समीक्षा करने की भूमिका को देखते हुए बनाया गया है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि; एक लोकप्रिय बहुमत सरकार की मनमानी कार्रवाइयों का बचाव नहीं है। हर कार्रवाई का अनिवार्य रूप से संविधान का पालन करना आवश्यक है। यदि न्यायपालिका के पास न्यायिक समीक्षा की शक्ति नहीं है, तो इस देश में लोकतंत्र का कामकाज अकल्पनीय होगा।
न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अवहेलना करने की कार्यपालिका की बढ़ती प्रवृत्ति सीजेआई रमाना ने “कार्यपालिका द्वारा न्यायालय के आदेशों की अवहेलना, और यहां तक कि अनादर करने की बढ़ती प्रवृत्ति” पर भी चिंता व्यक्त की। विजयवाड़ा में पांचवें स्वर्गीय श्री लवू वेंकटेश्वरलु बंदोबस्ती व्याख्यान, जिसका विषय- ‘भारतीय न्यायपालिका- भविष्य की चुनौतियां’ था, में सीजेआई ने कहा- “अदालतों के पास पैसे या तलवार की शक्ति नहीं होती है। अदालत के आदेश केवल तभी अच्छे होते हैं जब उन्हें लागू किया जाता है। कार्यपालिका को कानून के शासन के लिए सहायता और सहयोग करना पड़ता है। हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कार्यपालिका द्वारा न्यायालय के आदेशों की अवहेलना और यहां तक कि अनादर करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।”