सरकार भले ही चुनकर आती है लेकिन उसका हर कदम संविधान की कसौटी पर कसा जाना चाहिए : जस्टिस चंद्रचूड़

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जनादेश न्यूज़ नेटवर्क
सेंट्रल डेस्क : सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि सरकार भले ही चुनकर आती हो लेकिन संविधान के आईने में उसके हर कदम का आकलन किया जाना चाहिए। अपने पिता और पूर्व सीजेआई वाई. वी. चंद्रचूड़ की 101वीं जयंती पर हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियों पर सवाल उठाया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि सरकार की चुनावी वैधता के बावजूद, संविधान के हिसाब से राज्य की प्रत्येक कार्रवाई या निष्क्रियता का आकलन किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि ‘हमारे संवैधानिक वादे’ की पृष्ठभूमि के तहत बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियों पर सवाल उठाया जाना चाहिए।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘तानाशाही, नागरिक स्वतंत्रता पर रोक, लैंगिकवाद, जातिवाद, धर्म या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव खत्म करना पवित्र वादा है, जो भारत को संवैधानिक गणराज्य के रूप में स्वीकार करने वाले हमारे पूर्वजों से किया गया था।’
वह अपने पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की 101वीं जयंती पर शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली महाराष्ट्र की संस्था शिक्षण प्रसार मंडली (एसपीएम) की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में ‘संविधान के रक्षक के रूप में छात्र’ विषय पर बोल रहे थे। जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्य न्यायाधीश थे।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत एक संवैधानिक गणतंत्र के रूप में 71वें वर्ष में है। कई मौकों पर यह महसूस किया जा सकता है कि देश का लोकतंत्र अब नया नहीं है और संवैधानिक इतिहास का अध्ययन करने और इसके ढांचे के साथ जुड़ने की जरूरत उतनी सार्थक नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि शांति या संकट के समय में, सरकार की चुनावी वैधता के बावजूद संविधान के अनुरूप राज्य की हर कार्रवाई या निष्क्रियता का मूल्यांकन करना होगा।’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत राज्य के अनुचित हस्तक्षेप के बिना, एक राष्ट्र के रूप में धार्मिक स्वतंत्रता, लिंग, जाति या धर्म के बावजूद व्यक्तियों के बीच समानता, अभिव्यक्ति और आवाजाही की मौलिक स्वतंत्रता जैसी कुछ प्रतिबद्धताओं और अधिकारों के वादे के दम पर एकजुट है। यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का स्थायी अधिकार है।
उन्होंने कहा, ‘बहुसंख्यक प्रवृत्तियां जब भी और जैसे भी सिर उठाती हैं, तब उसपर हमारे संवैधानिक वादे की पृष्ठभूमि के तहत सवाल उठाया जाना चाहिए।’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने डॉ. भीमराव आंबेडकर को याद किया और कहा कि जातिवाद, पितृसत्ता और दमनकारी हिंदू प्रथाओं के खिलाफ लड़ाई शुरू करने से पहले, उनका पहला संघर्ष शिक्षा तक पहुंच प्राप्त करना था।