पुरानी कहावत है कि सियासत और अदावत का चोली दामन का साथ होता है, लेकिन राजनीति में दुश्मनी अक्सर अपने विरोधी से ही होती है

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जनादेश न्यूज़ बिहार
बिहार की धरती का मिज़ाज ही कुछ ऐसा रहा है कि वह राजनीति में नये प्रयोग करने के लिए मशहूर है. पुत्र और पत्नी मोह के जलवे तो लोग देख ही चुके हैं, लेकिन घर की चारदीवारी के भीतर चल रही चाचा-भतीजे की अदावत इस तरह सड़कों पर अपना नाच दिखायेगी, इसकी उम्मीद कम ही लोगों को होगी.
जायदाद को लेकर आपसी झगड़े होना तो आम बात है, लेकिन राजनीति की विरासत पर दावा करने को लेकर ऐसी लड़ाई देश की आधुनिक राजनीति में शायद पहली बार देखने को मिल रही है. करीब साढ़े चार दशक तक राजनीति की हवा का रुख भांपने में माहिर और तकरीबन हर सरकार में केंद्रीय मंत्री बनने वाले रामविलास पासवान ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनके दुनिया से विदा होने के महज सवा साल के भीतर उनका ही भाई सियासत की विरासत संभालने वाले ‘चिराग’ को दिन में तारे दिखाने पर मजबूर कर देगा. इसीलिये राजनीति के खट्टे-मीठे स्वाद चख चुके पुराने राजनीतिज्ञ कहा करते थे कि सियासत का अपना कोई चरित्र नहीं होता और सत्ता पाने के लिए वो किसी भी हद तक नीचे गिर सकती है.
पशुपति पारस और चिराग पासवान की इस लड़ाई ने उस अनुभव को सही साबित कर दिखाया है. घर की लड़ाई जब सड़क पर आ जाये तो कुछ तमाशबीन होते हैं, तो कुछ उस मौके का फायदा उठाने की तलाश में रहते हैं. अब इससे बीजेपी को फायदा हो या जेडीयू को लेकिन बताते हैं कि चिराग पासवान बिहार में एनडीए के लिए बड़ी मुसीबत बनते जा रहे थे, सो चाचा के जरिये ही उनकी सियासी दौड़ पर ब्रेक लगाने के लिए ही यह सारा तानाबाना रचा गया. 
अब एलजेपी के विधिवत अध्यक्ष होने के नाते चिराग पासवान ने पार्टी के सभी बागी सांसदों को एलजेपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ये फैसला लिया गया है. फैसले के अनुसार पशुपति पारस, प्रिंस राज, वीणा देवी, महबूब अली कैसर और चंदन सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने की वजह से पार्टी की सक्रिय सदस्यता से निलंबित कर दिया है. इस फैसले के बाद वे पार्टी में किसी भी तरह के फैसले लेने के अधिकारी नहीं होंगे.
बागी होने का आरोप लगाते हुए भले ही पांचों सांसदों को पार्टी से बाहर कर दिया गया हो लेकिन इससे इन सबकी सांसदी पर कोई खतरा आता इसलिये नहीं दिखता क्योंकि लोकसभा के स्पीकर पारस गुट वाली पार्टी को ही अधिकृत मानते हुए अपनी मान्यता देने में देर नहीं लगाएंगे.
वैसे चिराग अभी युवा हैं और न ही उन्हें इतना अनुभव है कि राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों से निपटने के लिये कब, कहां, किस गोटी का इस्तेमाल करना है, सो फिलहाल तो वे सियासी शतरंज की बाज़ी हार गए लगते हैं. लेकिन राजनीति में कभी कुछ भी स्थायी नहीं होता, लिहाज़ा उम्मीद करनी चाहिये कि युवा शक्ति के जरिये वे बिहार की राजनीति में नई ताकत बनकर उभरेंगे. कह सकते हैं कि ‘चिराग’ की रोशनी कुछ ज्यादा होगी.