लोक आस्था का महापर्व छठ कल से शुरु

जमुई
जनादेश न्यूज़ जमुई
जमुई (ब्यूरो अजीत कुमार) : अब छठ पूजा को लगभग भारत के सभी राज्यों में मनाया जाने लगा है।एक समय इसके विरोध में इसे उत्तर भारतीयों का पर्व कहा जाने लगा था। पर छठ पूजा का महत्व और महिमा  अनोखी मानी जाती है . भगवान सूर्य जिन्हें आदित्य भी कहा जाता है वास्तव एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं. इनकी रोशनी से ही प्रकृति में जीवन चक्र चलता है. इनकी किरणों से ही धरती में प्राण का संचार होता है और फल, फूल, अनाज, अंड और शुक्र का निर्माण होता है. यही वर्षा को आकर्षित भी करते हैं और ऋतु चक्र को चलाते हैं. यह पर्व भगवान सूर्य  के प्रति श्रद्धा  विश्वास और समर्पण को दिखाता है .सूर्य षष्टी या छठ व्रत इन्हीं आदित्य सूर्य भगवान को समर्पित है . इस महापर्व में सूर्य नारायण के साथ छठी माई की पूजा भी होती है. दोनों ही दृष्टि से इस पर्व में अलग अलग कथा का महत्व है. पौराणिक छठी देवी की कथा के अनुसार एक थे राजा प्रियव्रत उनकी पत्नी थी मालिनी. राजा रानी नि:संतान होने से बहुत दु:खी थे. उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया. यज्ञ के प्रभाव से मालिनी गर्भवती हुई परंतु महीनो बाद जब उन्होंने एक बालक को जन्म दिया वो भी मृत पैदा हुआ. प्रियव्रत इस से अत्यंत दु:खी हुए और आत्म हत्या करने को सोचने लगे।प्रियव्रत जैसे ही आत्महत्या करने वाले थे उसी समय एक देवी वहां प्रकट हुईं. देवी ने कहा प्रियव्रत मैं छठी देवी हूं. मेरी पूजा विधि विधान से एवं सच्चे मन से कर तुझे पुत्र की प्राप्ति होती है, मैं सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाली हूं. अत: तुम मेरी पूजा करो तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा ने देवी की आज्ञा मान कर कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि को देवी छठी की पूजा पूरे विधिविधान से की उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. इस दिन से ही छठ व्रत का अनुष्ठान चला आ रहा है वहीं
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीरामचन्द्र जी जब अयोध्या से लटकर आये तब राजतिलक के पश्चात उन्होंने माता सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को सूर्य देवता की व्रतोपासना राज्य की सुख समृद्धि के लिये किया और वहीं से राज्य की प्रजा में यह पर्व मान्य हो गया और धीरे धीरे इसका विस्तार होता चला गया। लोक परंपरा के अनुसार छठी मईया को भगवान सुर्य की बहन भी माना जाता है।यह त्यौहार बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश,महाराष्ट्र ,पश्चिम बंगाल,एवं भारत के पड़ोसी देश नेपाल के साथ साथ देश के अन्य राज्यों में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है . इस पर्व की यहां बड़ी मान्यता है. इस महापर्व में छठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरूष दोनों ही व्रत रखते हैं. व्रत चार दिनो का होता है पहले दिन यानी चतुर्थी को आत्म शुद्धि हेतु व्रत करने वाले केवल अरवा (शुद्ध आहार ) खाते हैं . दुसरे दिन पंचमी के दिन स्नान के बाद पूजा पाठ करके प्रदोष काल में गुड़ और नये चावल से खीर बनाकर फल और मिष्टान से छठी माता की पूजा की जाती है फिर व्रत करने वाले कुमारी कन्याओं को एवं ब्राह्मणों को भोजन करवाकर इसी खीर को खाते हैं. षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम और शुद्ध पकवान बनाये जाते हैं. संध्या  के समय पकवानों को बड़े बडे बांस के डालों में भरकर जलाशय के निकट यानी नदी, तालाब, सरोवर पर ले जाया जाता है. इन जलाशयों में ईख का घर बनाकर उनपर दीया जालाया जाता है. व्रत करने वाले जल में स्नान कर इन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं छठी माता को आर्घ्य देते हैं. यही एक ऐसा पर्व है जहां उगते सुर्य के साथ डूबते सुर्य को भी आर्ध्य देने की परंपरा है ।संध्या का आर्ध्य दे कर नजदीक के लोग तो घरों को लौट जातें हैं पर आस्थवान रात भर जागरण कीर्तन कर सुबह होने का इंतजार करतें हैं। एवं सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं.एवं उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं. तथा प्रसाद का भी वितरण करतें हैं फिर सभी अपने अपने घर लट आते हैं.कहतें हैं की भगवान भष्कार हर मनोकामना पुर्ण करतें हैं।इस पर्व के विषय में यह भी मान्यता है कि जो भी छठी माता और सूर्य देव से सच्चे दिल जो भी मन्नत माँगी जाती है उनकी मुरादें पूरी होती है. इस अवसर पर मुराद पूरी होने पर बहुत से लोग सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं.  दंडवट की प्रक्रिया में सीघे खडे होकर सूर्य देव को प्रणाम किया जाता है फिर पेट की ओर से ज़मीन पर लेटकर दाहिने हाथ से ज़मीन पर एक रेखा खींची जाती है. यही प्रक्रिया नदी तट तक पहुंचने तक बार बार दोहराई  जाती है.जब तक घाट ना पहुंच जाए।और आराध्य सुर्य देव इनके सारे कष्टों को हर लेते हैं।