साहित्यिक मंडली “शंखनाद” ने दो विभूतियों की मनाई जयंती, आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन

नालंदा बिहार शरीफ
 जनादेश न्यूज़ नालंदा
— साहित्य और पत्रकारिता के आदर्श पुरुष थे बदरीनाथ वर्मा
— साहित्य और पत्रकारिता के आदर्श पुरुष थे बदरीनाथ वर्मा और डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा
— पत्रकारिता और सार्वजनिक जीवन में शुचिता के मानदंड थे आचार्य बदरीनाथ वर्मा
— साहित्य–धर्मी नेताओं से हीं यह देश स्वतंत्र और मज़बूत बना
— राजनीति की तपती धूप में साहित्य की घनी छांव थे आचार्य बद्रीनाथ वर्मा और डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा
बिहारशरीफ : 10 नवम्बर 2019 दिन रविवार को स्थानीय श्री हिंदी पुस्तकालय सोहसराय, करुणाबाग-बिहारशरीफ में साहित्यिक मंडली नालंदा ‘शंखनाद’ के तत्वावधान में साहित्य,पत्रकारिता और राजनीति के आदर्श पुरुष थे बदरीनाथ वर्मा की 117 वीं व शिक्षाविद्स, बिहार राज्य निर्माता डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा की 148 वीं जयंती तथा हज़रत मुहम्मद साहब की जन्म दिवस पर याद समारोह मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता गीतकार, साहित्यकार डॉ० हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने की। समारोह में उपस्थित लोगों ने शिक्षाशास्त्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा व शिक्षाविद्न डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ० हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने कहा कि अपने समय के महान साहित्यसेवी, पत्रकार, प्राध्यापक, स्वतंत्रता सेनानी और बिहार के प्रथम शिक्षामंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा का व्यक्तित्व और चरित्र अत्यंत प्रेरणास्पद और अनुकरणीय रहा। वे राजनीति में एक सशक्त साहित्यिक हस्तक्षेप थे। दूसरी ओर महान शिक्षाविद् डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा तो बिहार के जनक हीं थे। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने साहित्यिक और राजनीतिक स्वार्थ में डूबे देश व प्रदेश के कर्णधार तथा नेतागण उन्हें भूलते जा रहे हैं।
साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ के सचिव साहित्यसेवी राकेश बिहारी शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि संस्कृत, हिंदी, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी के गम्भीर ज्ञाता बदरीनाथ वर्मा जी को सम्पूर्ण ‘गीता’ कंठस्थ थी। निस्संदेह, जो कोई भी बदरीनाथ वर्मा जी के जीवन-वृत्त का अनुशीलन करेगा, उसे उसमें सरलता, स्वच्छता, सच्चरित्रता, साहस और परम सत्ता के प्रति प्रपन्नता के उदात्त उदहारण उपलब्ध होंगे। जब महापुरुषों की बातें आती हैं, तब हमारा चित्त उनके उन जीवनादर्शों की ओर हठात उन्मुख हो उठता है, जो मनुष्य के यथार्थ उत्थान के आधारभूत उपादान हैं। उनके वे गुण सामने आ जाते हैं, जिनके मनन से लोक-जीवन सार्थक और समुन्नत होने को कटिबद्ध होता है। उनके उन सत्कर्मों के दर्शन होते हैं, जो हमारे भीतर साहस, स्वस्थता, शान्ति, प्रकाश, प्राण तथा शक्ति का संचार करते है। बदरी बाबू पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और महान राजनीति शास्त्री चाणक्य का गहरा प्रभाव था। उन्होंने चाणक्य के जीवन से यह सीखा था कि, राज–कोश के धन का, निजी कार्य में, एक बूँद तेल के लिए भी व्यय नही करना चाहिए। उन्होंने राज्य के शिक्षा विभाग समेत अन्य विभागों के मंत्री रहते हुए इसका अक्षरश:पालन किया। उन्होंने शासन का कुछ भी लेना स्वीकार नही किया। मीठापुर स्थित अपने अत्यंत साधारण खपरैल घर में रहे, किंतु सरकारी आवास नहीं लिया। ठीक उसी तरह, जिस तरह, एकीकृत विशाल भारत के अर्थशास्त्री व कूटनीति-शास्त्र के ज्ञाता आचार्य चाणक्य एक गुफानुमा अति साधारण गृह में रहा करते थे।
मगही-पाली भाषा के विकास के लिए 06 जनवरी 1957 को बिहार प्रदेश के तत्कालीन पटना जिला शुकदेव विद्यालय एकंगर सराय स्थित प्रांगण में भिक्खु जगदीश काश्यप के अध्यक्षता में मगही सम्मेलन किया गया था, जिसका उद्घाटन साहित्यसेवी, पत्रकार, प्राध्यापक, स्वतंत्रता सेनानी और बिहार के प्रथम शिक्षामंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा ने किया था। एस सम्मेलन में देश-प्रदेश के हजारों मगही-पाली भाषा सेवी साहित्यकार जुटे थे।
उन्होंने कहा कि, डा सच्चिदानंद सिन्हा ने “बिहार” को अलग राज्य बनाने की माँग उठाई, उसके लिए संघर्ष किया, जिसने बंग–भंग कराकर “बिहार” को अलग अस्तित्व दिलाया। डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा भारत के प्रसिद्ध सांसद, शिक्षाविद, अधिवक्ता तथा पत्रकार और परिवर्तनकारी राजनेता थे थे। वे संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष डा राजेंद्र प्रसाद और डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष थे। 9 दिसंबर 1946 को वे इसके अध्यक्ष निर्वाचित हुए। डा राजेंद्र प्रसाद ने डॉ० सिन्हा से ही पदभार ग्रहण किया था। बिहार को बंगाल से पृथक राज्य के रूप में स्थापित करने वाले लोगों में उनका नाम सबसे प्रमुख है। 1910 के चुनाव में चार महाराजों को परास्त कर वे केन्द्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधि निर्वाचित हुए। प्रथम भारतीय जिन्हें एक प्रान्त का राज्यपाल और हाउस ऑफ् लार्डस का सदस्य बनने का श्रेय प्राप्त है।
साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ के अध्यक्ष इतिहासकार,साहित्यकार, प्रोफेसर, डॉक्टर लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि अंग्रेजी के प्राध्यापक होते हुए भी बदरी बाबू ने हिंदी के लिए जो किया वह स्वर्णाक्षरों में अंकित है। ये ऐसे महापुरुष थे, जो अपनी आखिरी साँस तक राष्ट्र और राष्ट्रभाषा का सौभाग्य सँवारने के लिए सतत समुद्यत और सचेष्ट रहे। गांधी-युग के हिंदी-सेवी देशभक्तों में बदरी बाबू का स्थान बहुत ऊँचा है। उनका निरहंकार व्यक्तित्व, उनकी सदाशयता, सहृदयता, सादगी और सर्व-हित-कामना सचमुच मनुष्य-जाति के लिए गौरव का विषय है। राष्ट्रीय एकता की उद्बोधिका राष्ट्रभाषा हिंदी की जो आकार-कल्पना की गई है, बदरी बाबू मनसा-वाचा-कर्मणा उसके मूर्त रूप थे। गांधीवाद के अनन्य आग्रही बदरी बाबू हिंदी के लिए ही जिए और हिंदी के लिए ही मरे वे सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने कहा कि सच्चिदानंद सिन्हा एक महान शिक्षाविद, पत्रकार, राजनेता और परिवर्तनकारी थे। पटना में सिन्हा पुस्तकालय जो है, उसकी स्थापना 1924 ईस्वी में शिक्षाविद् विधिवेता डॉक्टर सच्चिदानन्द सिन्हा ने की थी। इस पुस्तकालय का मूल नाम ‘श्रीमती राधिका सिन्हा संस्थान एवं सच्चिदानन्द सिन्हा पुस्तकालय’ है। 1955 में राज्य सरकार ने इसे सुरक्षित रखने के लिए अपने अधीन कर लिया।
बहुभाषाविद, नामचीन शायर, साहित्यकार बेनाम गिलानी ने हज़रत मोहम्मद साहब के जीवनकाल पर विस्तार से प्रकाश डाला। आचार्य बदरीनाथ वर्मा में बताते हुए कहा कि आचार्य वर्माजी हिन्दी हीं नही, बल्कि उर्दू और अंग्रेजी के भी विद्वान थे। वे जितने अच्छे संपादक थे उतने हीं अच्छे व्याख्याता भी थे। उन्होंने दैनिक पत्र ‘भारत मित्र’, राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘देश’ के अतिरिक्त पटना से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘सर्च लाइट’ के संयुक्त संपादक के रूप में उल्लेखनीय यश प्राप्त किया। वे साहित्य सम्मेलन से प्रकाशित पत्रिका ‘साहित्य’ का भी वर्षों तक संपादन किया।
सहित्यकार व गीतकार मुनेश्वर शमन ने कहा कि पत्रकारिता के कीर्ति-स्तम्भ, मानवीय संवेदनाओं और सार्वजनिक जीवन में शुचिता के मानदंड तथा सरलता और विद्वता के प्रतिमान बिहार के प्रथम शिक्षा मंत्री आचार्य बदरी नाथ वर्मा एक अत्यंत मोहक और अनुकरणीय व्यक्तित्व थे। ‘विद्या ददाति विनयं’ के मूर्तमान दृष्टांत थे वे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद के अत्यंत आत्मीय मित्रों में परिगणित होने वाले प्रदेश के अग्र-पांक्तेय नेताओं में प्रतिष्ठित वर्मा जी बिहार के प्रथम शिक्षा मंत्री होते हुए भी इतनी सरलता और सादगी से रहते थे कि, उन्हें कोई आज देखता तो मामूली व्यक्ति समझ कर उपेक्षा करता, किंतु उस भेष में भी वे अत्यंत श्रद्धा-पात्र थे।
मंडली में सक्रिय भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक, साहित्यकार,प्रो० डॉ०आनंद वर्द्धन, इतिहासकार तुफैल अहमद खां सूरी, कमल प्रकाश,मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश,समाजसेवी धीरज कुमार,संजय कुमार पाण्डेय, साधना कुमारी, राजीव कुमार शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ संजय कुमार पाण्डेय ने सरस्वती-वंदना से किया।
मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश, राकेश बिहारी शर्मा, मुनेश्वर शमन,डॉली कुमारी ने सुनाकर खूब वाहवाही लूटी।
डॉ लक्ष्मीकांत सिंह ने भी अपनी रचनाएं सुनाई। संचालन गीतकार मुनेश्वर शमन ने व धन्यवाद ज्ञापन साहित्यसेवी राकेश बिहारी शर्मा ने किया।