राजगीर : कला के नंदन कानन में विचरण करने वाले राजगीर के संगीतज्ञ सुरेंद्र कुमार नंदन नहीं रहे. 75 वर्ष की आयु में कल उनका निधन हो गया. उनके निधन से संगीत और कला के क्षेत्र में अपूर्णीय क्षति हुई है, जिसकी भरपाई निकट भविष्य में संभव नहीं है. सरल स्वभाव, सहृदय व्यक्तित्व, विनम्रता और सादगी के प्रतिमूर्ति नंदन जी उर्फ गुरुजी संगीत के सच्चे साधक थे. उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व की धवल ज्योत्सना में अनेक शिष्यों को तराश कर ऊंचाई प्रदान की है, जो कला के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं. उन्हें बचपन से ही कला और संगीत से गहरा लगाव था. मामा सीता राम प्रसाद के घर रहकर उनसे उन्होंने कला की शिक्षा ग्रहण की. संगीत के क्षेत्र में स्नातकोत्तर में गोल्ड मेडलिस्ट थे. उनका पैतृक गांव राजगीर के पास तिलैया है. ग्रामीण परिवेश से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केंद्र राजगीर में उनके द्वारा संगीत महाविद्यालय की स्थापना 1979 ईस्वी में की गई थी. तब से वे आजीवन संगीत के प्रति समर्पित रहे. वे केवल एक उम्दा कलाकार ही नहीं, बल्कि सच्चे साधक भी थे. नृत्य हो या शास्त्रीय गायन, वादन सभी विद्याओं में उनका सम्मान पकड़ था. हजारों शिष्यों को संगीत, गायन, वादन और कला से जोड़ कर उन्होंने राजगीर को नया आयाम दिया था. आखरी सांस तक वे राजगीर संगीत महाविद्यालय के संस्थापक रहे. इस महाविद्यालय का ब्रांच बिहारशरीफ में नंदन कला महाविद्यालय के नाम से संचालित हो रहा है. कला की बारीकियों पर गहरी पकड़ रखने वाले नंदन जी तबला वादन और शास्त्रीय गायन में सिद्धहस्त थे. वे तबला पर संगत अद्भुत तरीके से करते थे. तबले की थाप से वे अलग-अलग आवाज निकालते थे. तबला वादन की शिक्षा उन्होंने बनारस घराने से हासिल की थी. उनके कई ऐसे शिष्य हैं, जिन्हें राज्य के बाहर भी प्रदर्शन का अवसर मिलता है. सरल और सहज व्यक्तित्व के कारण बचपन से ही उनसे कई लोग जुड़ गए थे. उनसे जुड़ कर छात्र अपने को सौभाग्यशाली मानते थे. उनके शिष्य कहते हैं कि उन्हें नाराज और क्रोधित होते आज तक नहीं देखा. विषम परिस्थितियों में भी मुस्कुराना उनकी आदत में शुमार था. प्यार से उन्हें लोग गुरुजी कह कर पुकारते थे. वह गुरु की गरिमा को आजीवन बरकरार रखे. इतनी ऊंचाई के बाद भी अहंकार से वे कोसों दूर थे. अब उनकी कृति और योगदान ही शेष रहेगा.