— भारतीय सामाजिक क्रान्ति की पहली योद्धा थी सावित्रीबाई फुले — धूमधाम से मनाई गई सावित्री बाई फुले जयंती — भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले की जयंती समारोह मनाई गई — नारी मुक्ति की प्रणेता व प्रेरणाश्रोत थी सावित्री बाई फुले — सावित्री बाई फुले ने दलितों व पिछड़ों को जीने की राह दिखाई — सावित्री बाई ने हर वर्ग की महिलाओं का शिक्षित किया
बिहारशरीफ : स्थानीय बिहारशरीफ के बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली नालंदा ‘शंखनाद’ के तत्वावधान में सविता बिहारी निवास स्थित सभागार में देश के लोकप्रिय सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, भारत की प्रथम शिक्षिका, प्रखर कवयित्री सावित्री बाई फुले की 189 वीं जयंती साहित्यकार डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में समारोहपूर्वक मनाई गई। मौके पर सावित्री बाई फूले के तस्वीर पर दीप प्रज्जवलित व पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। अध्यक्षीय सम्बोधन में शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि आज समाज में यदि महिलाओं को कुछ आजादी मिली है तो इसमें समाजसेविका माता सावित्री बाई फूले का अहम योगदान है। जिस समय में महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखने के लिये षड़यंत्र रचा गया था ताकि वे शिक्षित होकर अपने हक व अधिकार की बात न करने लगे उस विपरीत परिस्थिति में माता सावित्री बाई फूले ने महिलाओं को शिक्षित करने के लिये संघर्ष की। प्रताड़ना के बावजूद सावित्री बाई फूले ने अपने पति ज्योति राव फूले के साथ मिलकर महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ समाज से कई कुरीतियों को मिटाने का काम किया।
शंखनाद के सचिव शिक्षाविद् राकेश बिहारी शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि नारी मुक्ति की प्रणेता, आधुनिक युग के श्रेष्ठ कवि सावित्रीबाई फुले भारत की एक समाज सुधारिका एवं लोकप्रिय प्रखर कवयित्री थीं। फुले दंपत्ति ने एक जनवरी 1848 में पुणे की भिड़ेवाड़ी में लड़कियों के लिए भारत में पहला स्कूल खोला। इसी स्कूल से सावित्री बाई और सगुणाबाई ने अध्यापन का काम शुरू कर भारत की पहली महिला अध्यापिका होने का गौरव हासिल किया। सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका और मराठी कवयित्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। वे प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले ने पुणे में अपने पति के साथ मिलकर 1848 में विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पांच नए विद्यालय खोलने में सफल हुए। इस कार्य के लिए तत्कालीन सरकार ने इन्हें सम्मानित भी किया। क्योंकि लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। ऐसे में सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया और इसी कारण उनकी मृत्यु भी हो गई थी। आपको बताते चलें कि 3 जनवरी 2017 को सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले 186 वें जन्मदिवस पर गूगल ने उनका गूगल डूडल प्रसिद्ध कर उन्हें अभिवादन भी किया था।
उर्दू-हिंदी के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार व अंतरराष्ट्रीय शायर बेनाम गिलानी ने कहा कि, देश में अछूतों एवं स्त्रियों की शिक्षा की क्रांतिकारी पहल करने वाली महान समाज सेविका व कवयित्री सावित्री बाई फुले ने अपने जीवन में पग-पग पर यातनाओं, आतंकों व प्रहारों से बहादुरी व पूरे साहस के साथ लोहा लिया था। सावित्रीबाई फुले ने भारतीय नारी व दलितों को अस्मिता व गरिमा के साथ जीने का अधिकार दिलाया। दलितों व स्त्रियों के लिये शिक्षा का द्वार खोलकर सावित्रीबाई फुले ने आधुनिक भारत के निर्माण की आधारशिला रखी।
समाज सेविका सविता बिहारी ने कही कि सावित्रीबाई फुले देश की क्रांति ज्योति थीं। उन्होंने तत्कालीन रूढ़िवादी समाज में नारी शिक्षा के लिए एक जनवरी 1848 को नौ बालिकाओं को लेकर पुणे में कन्या पाठशाला की शुरुआत कर अभूतपूर्व कार्य किया। लोगों के विरोध के बावजूद वे निरंतर शिक्षा के प्रचार प्रसार में लगी रहीं। उनहोंने विधवा विवाह, छुआछूत, अंधविश्वास के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन किया। साल 1896 में महाराष्ट्र में भीषण प्लेस फैलने पर अस्पताल खोलकर लोगों की सेवा करते समय बीमारी से ग्रसित हो गईं। उनकी प्रेरणा से नारी शिक्षा को बढ़ावा मिला। माता सावित्री बाई ने सभी वर्ग व समाज की महिलाओं को शिक्षित करने का काम किया। इसके लिए देश की महिलाएं हमेशा उनकी ऋणी रहेंगी। सावित्रीबाई फूले ने स्त्रियों को ही नहीं मर्दों को भी उनकी जड़ता और मूर्खता से आज़ाद कराया है।
इतिहासकार तुफैल अहमद खान सूरी ने कहा कि महिलाएं उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में खुशहाली ला सकती हैं। उन्होने सावित्री बाई फुले के अधूरे सपने को पूरा करने का संकल्प लिया।
किसान नेता समाजसेवी कवि चन्द्र उदय कुमार मुन्ना ने कहा कि सावित्री बाई ने उस समय समाज में शिक्षा की जोत जलाई, जब समाज में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था। तब उन्होंने शिक्षक बन के पूरे समाज में एक मिसाल कायम की और फिर महिलाओं को शिक्षित बनाया। महानियका सावित्रीबाई ने समाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिणक क्रान्ति की नीव भारत में रखी जिसके कारण आज आधुनिक भारत में महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो रही है जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, राज्यपाल, मुख्यमन्त्री, सांसद, मंत्री, विधायक, सरपंच आदि राजनैतिक पदों के अतिरिक्त शिक्षा, प्रशासन, विज्ञान और खेल में देश का गौरव बढ़ा रही इसका ज्वलन्त उदाहरण ओलम्पिक खेलों में भारत को शर्मसार होने से बचा कर इतिहास रचने वाली सिंधु,साक्षी,पी.टी.उषा ने भारत के लोगों को आईना दिखा दिया, इसका श्रेय हमे सिर्फ और सिर्फ ज्योतिबाफुले- सावित्री फुले एंव भारतीय संविधान को ही देना चाहिए किन्तु दुखद इस देश में ऐसे क्रान्तिकारियो को छुपाया जाता रहा है।
मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश ने कहा कि सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।