रजौली (नवादा) प्रखंड क्षेत्र में लाख सरकारी दावे के बावजूद बच्चे पढ़ने की उम्र में पढ़ने के बजाय कचरे चुन रहे हैं।सरकार बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित होने का दावा कर करती है,लेकिन प्रखंड मुख्यालय में सैकड़ों नौनिहाल कचरे के ढेर में ही अपना भविष्य तलाश रहे हैं।सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया ताकि गरीबों के बच्चों को भी बेहतर तालीम मिल सके।गरीबों को सस्ते दर पर खदान उपलब्ध कराने के लिए खाद सुरक्षा अधिनियम को अमलीजामा पहनाया।इतना ही नहीं गरीबों के कल्याणर्थ व सहायतार्थ कई योजनाएं चलाई।बावजूद रजौली में गरीबों के बच्चे आज भी कूड़े के ढेर पर अपना भविष्य तलाश रहे हैं। उनकी रोजी-रोटी इसी कचरे की ढेर पर टिकी हुई है।यानी कूड़े के ढेर में कबाड़ चुनकर ही वे अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं।कूड़े के ढेर में कबाड़ चुनने के चलते हुए गंभीर बीमारियों की चपेट में भी आ जाते हैं।लेकिन वह करें तो क्या करें क्योंकि उनके पास कोई दूसरा साधन भी तो नहीं है।कूड़े के बीच से लोहा,शीशा व प्लास्टिक की बोतलें, लकड़ी के सामान व कागज आदि चुनने वाले यह बच्चे सामाजिक व प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार हैं। कूड़े-कचरे के बीच जीविकोपार्जन के लिए कबाड़ चुनना इनकी नियति बन गई है।
परिवार का भी भरण-पोषण करते बच्चे
बाल श्रम अधिनियम के तहत बच्चों को काम लेना कानूनी अपराध है।पर कूड़े कचरे के ढेर में भविष्य तलाशने वाले बच्चों को इस अधिनियम से कोई लेना देना नहीं है।उनकी यही दिनचर्या है और जीने का साधन भी यही है।कूड़े कचरे के ढेर से कबाड़ चुनकर यह बच्चे अपना तो पेट भरते ही हैं।साथ ही साथ घर चलाने में परिजनों की भी सहायता करते हैं।पेट की आग बुझाने के लिए यह बच्चे अपना बचपन कूड़े कचरे के ढेर में कबाड़ चुनने में ही गवा देते हैं।ऐसे बच्चों पर बाल श्रम के तहत कोई मामला भी नहीं बनता है।
सरकारी आंकड़ों में सब कुछ दुरुस्त
जहां तक शिक्षा के अधिकार अधिनियम की बात है तो सरकारी आंकड़ों में सब कुछ दुरुस्त है।यानी ऐसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं या फिर कूड़ा कचरा चुनने में ही अपना दिन व्यतीत कर देते हैं।वे भी सरकारी स्कूलों में नाम अंकित है। उनके नाम पर भी सरकारी सुविधाएं उठाई जाती है।यानी सरकारी आंकड़ों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम बिल्कुल दुरुस्त है। लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और है।
पीठ पर स्कूल बैग की जगह कचरे का बोरा
सूरज की पहली किरण के साथ ही ये बच्चे पीठ पर प्लास्टिक का बोरा लिए वह कबाड़ चुनने के लिए निकल पड़ते हैं।इस जमात में कई बच्चे शामिल रहते हैं।इन बच्चों के स्वास्थ्य सुरक्षा की कोई गारंटी लेने को तैयार नहीं है।इन नौनिहालों के प्रति सरकारी महकमा बिल्कुल उदासीन है।कबाड़ से चुने गए हैं सामान को ले गए बच्चे कबाड़ी वालों के पास जाते हैं।कबाड़ी वाले इन्हें कुछ पैसे देकर उनका सामान खरीद लेते हैं।यह पैसा न्यूनतम मजदूरी के बराबर भी नहीं होता है।
क्या कहते हैं,अधिकारी
श्रम अधीक्षक नवादा सुजीत कुमार ने कहा कि बाल श्रम रोकना हमारी जिम्मेवारी है।रजौली में हो रहे बाल श्रम को रोकना है।इसके लिए पहल एक टीम को बना कर जांच किया जाएगा।