जनादेश न्यूज़ नालंदा
बिहारशरीफ : नालंदा मात्र एक स्थान नहीं, बल्कि दर्शन और संस्कृति है। नालंदा और उदंतपुरी की यह धरती बहुत पवित्र है। इसकी यश और गाथा दुनिया में प्रसिद्ध है। नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय के 69 वें स्थापना दिवस के मौके पर वक्ताओं ने यह कहा। महाविहार के इतिहास में पहली बार एक मंच पर चार विश्वविद्यालयों के कुलपति एक साथ दिखे। समारोह का उद्घाटन हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के कुलपति प्रोफ़ेसर हरिश्चंद्र सिंह राठौर, पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रासबिहारी सिंह और नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर वैद्यनाथ लाभ ने संयुक्त रूप से दीप जलाकर किया। समारोह के मुख्य अतिथि प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा नालंदा की धरती बहुत पवित्र है। यहां का कण-कण इतिहास से भरा पूरा है। इसकी यश गान दुनिया में प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा नव नालंदा महाविहार का भले ही 69 वा स्थापना दिवस आज मनाया जा रहा है, किंतु महाविहार की स्थापना तो 15 सौ साल पहले यहां कुमारगुप्त द्वारा की गई थी। महाविहार के उस परंपरा को नव नालंदा महाविहार आगे बढ़ा रहा है। नालंदा के उस शैक्षणिक इतिहास को पुनः प्रतिष्ठापित करने की जरूरत पर जोर दिया । उन्होंने कहा कि लोग बख्तियार खिलजी के उस कृत्य की चर्चा करते हैं। लेकिन नालंदा के आचार्य शीलभद्र, नागार्जुन जैसे विद्वान को भूल गए। उन्होंने कहा नागार्जुन जैसा साइंटिस्ट आज भी दुनिया में नहीं है। बख्तियार खिलजी नालंदा विश्वविद्यालय के भवनों को नष्ट कर सकता है। लेकिन नालंदा की आत्मा को नहीं । उन्होंने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर में सेमिनार और व्याख्यान करके पुनः उसमें प्राण प्रतिष्ठा करने की जरूरत पर जोर दिया। कोई भी अतिक्रमणकारी उसके भवन को नष्ट कर सकता है लेकिन उसके विचारधारा और संस्कृति को नहीं। नालंदा के आचार्यो को याद कर मौलिक चिंतन को बढ़ावा दी जा सकती है । उन्होंने कहा कि देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिस परंपरा को शुरू किया था। उसे बढ़ाने की आवश्यकता है। नालंदा के गौरवशाली इतिहास को रेखांकित करते हुए प्रोफेसर अग्निहोत्री ने कहा सहस्त्रो वर्ष पूर्व यूरोप में चेतना का विकास शुरू हुआ था। उस समय नालंदा विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी द्वारा जलाया जा रहा था। मौलिक चिंतन कर ही नालंदा का पुनरुद्धार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विदेशी विश्वविद्यालयों में हर छठा व्यक्ति भारतीय है।
इस अवसर पर पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रास बिहारी सिंह ने कहा कि बिहार के अन्य विश्वविद्यालयों में नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय विशिष्ट स्थान रखता है। यहां दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के छात्र पढ़ने आते हैं। वे भारत एवं अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ सांस्कृतिक संबंध मजबूत करते हैं। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय और नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय के साथ अकादमिक सहयोग करने का आश्वासन दिया।
नव नालंदा महाविहार डिम्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर वैद्यनाथ लाभ ने समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहा कि नालंदा 1478 वर्ष से महाविहार की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने नालंदा महाविहार की गौरवशाली शैक्षणिक परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि इसके भग्नावशेष के दर्शन से आभास होता है कि वह कितना बड़ा विश्वविद्यालय होगा। यह मात्र स्थान नहीं, बल्कि दर्शन और संस्कृति है। महाविहार नालंदा की उस प्राचीन गौरव को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए प्रयासरत है। नालंदा के रग रग में बुद्ध के संदेश रचे बसे हैं। उन्होंने कहा कि जिन जिन विषयों में महाविहार में पढ़ाई होती थी उन्हीं के रास्ते पर यह संस्थान चल रहा है। उन्होंने शिक्षकों और छात्रों से कहा कि आज आत्म परीक्षण, निरीक्षण का दिन है। गूगल की जगह किताब पढ़ने के लिए उन्होंने छात्रों को प्रेरित किया। अध्यक्ष प्रोफेसर राजेश रंजन ने विश्वविद्यालय के उपलब्धियों को विस्तार से प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का शुभारंभ बौद्ध भिक्षु के मंगल पाठ से किया गया।
इस अवसर पर नव नालंदा महाविहार के पूर्व निदेशक डॉ उमाशंकर व्यास, सीआरपीएफ ट्रेनिंग सेंटर के प्राचार्य ब्रिगेडियर वीरेंद्र कुमार सिंह , प्रभाकर मिश्रा, डॉक्टर पवित्रा श्रीनिवासन , डॉ निहारिका लाभ, एचएन मुखर्जी, डॉक्टर विश्वजीत कुमार, डॉक्टर सीवी मिश्रा , डॉक्टर अरुण कुमार यादव , डॉ हरे कृष्ण तिवारी, डॉ रूबी कुमारी, डॉक्टर धम्म ज्योति , डा दीपाकर लामा, डा गोपाल शरण सिंह एवं अन्य प्रमुख उपस्थिति थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ राणा पुरुषोत्तम कुमार सिंह ने किया। विश्वविद्यालय के डीन एकेडमिक डॉक्टर श्रीकांत सिंह ने आगत अतिथियों का स्वागत किया, जबकि रजिस्ट्रार डॉ सुनील प्रसाद सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय गया के कुलपति हरिश्चंद्र सिंह राठौर ने कहा कि नालंदा शिक्षा का महान केंद्र था। इसके बावजूद इसका अपेक्षित विकास नहीं हो सका है । 68 साल पहले नालंदा महाविहार की पुरानी की गरिमा को पुनर्स्थापित करने के लिए सरकार ने नव नालंदा महाविहार की स्थापना की थी। लेकिन अबतक इसका उम्मीदों के अनुकूल विकास नहीं हो सका है। महाविहार देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार बल्लभ भाई पटेल की देन है । उनके विचारधारा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि तक्षशिला और नालंदा के रूप में विश्वविद्यालय की संकल्पना बड़ी देन है । नालंदा महाविहार में उस समय प्रचलित प्रायः सभी विद्याओं की पढ़ाई होती थी। नव नालंदा महाविहार अपने को बौद्ध अध्ययन तक सीमित कर क्यों रखा है। यह विचारणीय है। इस बीच नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में नया विश्वविद्यालय खोला गया है। इसकी जरूरत नहीं थी। उसकी जगह नव नालंदा महाविहार को ही पूर्ण विश्वविद्यालय का दर्जा देकर नालंदा की गौरवशाली परंपरा को विकसित किया जाना चाहिए था। प्रोफेसर राठौर ने कहा कि नालंदा महाविहार की संकल्पना को आगे बढ़ाने के लिए नव नालंदा महाविहार को डीम्ड यूनिवर्सिटी से आगे की बात सोचनी होगी।
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