दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान पटना द्वारा पांच दिवसीय श्री रामचरित मानस एवं गीता विवेचना का कार्यक्रम।

जमुई
जनादेश न्यूज़ जमुई 
जमुई (ब्यूरो अजीत कुमार/संजय कुमार )
स्थानीय श्रीकृष्णा सिंह मेमोरियल स्टेडियम जमुई में,
“दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान” के तत्वावधान में दिनांक 18 से 22 नवंबर 2019 दोपहर 3:00 बजे से संध्या 6:00.बजे तक। आयोजित पांच दिवसीय श्रीरामचरितमानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ कार्यशाला का आयोजन किया गया।सर्वप्रथम कार्यक्रम की शुरुआत वार एसोसिएशन के अध्यक्ष शर्मा चन्द्रेश्वर उपाध्याय,पूर्व अध्यक्ष धीरेन्द्र कुमार सिंह,अधिवक्ता शिशिर दुबे,चन्द्रदेव सिंह पूर्व जिला अध्यक्ष चेम्बर्स आॅफ कॉमर्स जमुई,पूर्व सचिव मोहन प्रसाद राव व सचिव शंकर साह एवं चूआं निवासी गोबिन्द सिंह के द्वारा दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का उद्धाटन किया गया। प्रथम दिवस के सुअवसर सतगुरु श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री सुनीता भारती जी ने अपने संबोधन में कहा कि भगवान श्रीराम का चरित्र हमारे मानस में कैसे उतरे ?
उनके जैसे आदर्शवान, चरित्रवान, कैसे बने ? हम त्यागपूर्ण व मर्यादित जीवन कैसे जियें ? तथा मोह व अवसादग्रस्त अर्जुन जैसे शिष्य ने ऐसी कौन सी विद्या हासिल की जिसके द्वारा उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर समाज को दुराचार व भ्रष्टाचार से मुक्त करवा पाता है ?
मानव जो परमात्मा का सर्वोच्च कलाकृति है।गोस्वामी तुलसी जी ने कहा है कि “बड़े भाग्य मानुष तन पावा” क्या आज समाज में कहीं से भी मानव सर्वोच्च नजर आ रहा है नहीं, क्यों ? क्योंकि मानव अपनी वास्तविकता से बहुत दूर हो गया है। भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए यह सर्वोच्च कलाकृति सब कुछ करने के लिए तैयार है लेकिन लिप्सा प्राप्ति के बाद भी अशांत व दुखी ही नजर आता है। क्योंकि सिर्फ भौतिक साधनों में वास्तविक सुख नहीं है महापुरुषों ने इसे “मृग मरीचिका” यानी रेगिस्तान की रेत पर जब सूरज की किरणें, एक प्यासे को पानी का आभास करा आप पीछे भागने पर मजबूर कर देती है उसी प्रकार मानव भी दुनियावी सुख में असली सुख की तलाश करता है जो संभव नहीं है मृग की तरह ही झुलसकर अतृप्त ही प्राणांत करता है। उन्होंने कहा कि मानव की श्रेणी को वही प्राप्त करता है जो मानवीय है कर्तव्यों को पूरा करता है। जिसे तुलसीदास जी ने कहा- “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा”
यानी मानव का “लक्ष्य” मोक्ष प्राप्ति यानी अपने मूल में मिल जाना। तभी वास्तविक सुख की प्राप्ति संभव है। जिस प्रकार मछली जल रूपी आधार से विलग होकर संसारिक सारे साधनों में शांति का अनुभव नहीं करती। ठीक उसी प्रकार मनुष्य का आधार भी परमात्मा है जो साध्य है, और साध्य के बिना सांसारिक साधनों में वास्तविक शांति का एहसास नहीं हो सकता।
कार्यक्रम के अंत में उन्होंने प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर को प्राप्त करने का आह्वान किया। ईश्वर प्राप्ति ही मनुष्य का वास्तविक कर्म है अन्यथा शास्त्रों ने तो आहार, निद्रा,भय,मिथुन आदि क्रियाओं को करने वाले मनुष्य को पशु की श्रेणी में ही रखा है।
कार्यक्रम मे सुश्री सुमति भारती, सुश्री प्रीति भारती, एवं गुरुभाई पवन कुमार जी द्वारा सुमधुर भजनों का गायन किया गया तथा गुरुभाई श्याम जी एवं पप्पू ने भजनों को तालबद्ध किया।