चाईनिज प्रकाश की तेज चमक के सामने फीकी पड़ी स्वदेशी दीपक की लौ

जमुई
जनादेश न्यूज़ जमुई
चकाई(श्याम सिंह तोमर) : वैसे तो दीपावली को दीपोत्सव के नाम से भी जाना जाता है लेकिन बदलते समय के साथ दीपावली में दीपक की महत्ता लगातार घटती जा रही है. चाइनीज लाइटों के सैकड़ों प्रकार के सामने दीपक की लौ काफी धीमी पड़ गई है. अब दीपक का प्रयोग मात्र देवस्थलों में थोड़ा बहुत रह गया है. इससे एक ओर जहां दीपावली का परंपरागत स्वरूप धूमिल होता जा रहा है वहीं कुंभकारों की रोजी रोटी पर प्रतिकूल असर पड़ा है. दीपावली आने से महीनों पहले ही कुम्हार जाति के लोग मिट्टी के दिये बनाने में जुट जाते थे लेकिन अब मिट्टी की बनी सामग्री की घटती मांग को देख कुम्हारों ने इसे बनाना या तो कम कर दिया है या फिर बिल्कुल ही बंद कर दिया है. अब मिट्टी के दीये की जगह रंग-बिरंगे बिजली के बल्ब, झालर, लीची बल्ब व मोमबत्तियों ने ले ली है. यही कारण है कि मिट्टी के पुश्तैनी व्यवसाय को छोड़कर कुम्हार अन्य कार्य करने लगे हैं. प्रखंड के लोहसिंगना, हरअन्धी, महारायडीह,रामचंद्रडीह आदि इलाके में रहने वाले कुम्हार जाति के लोगों ने बताया कि एक समय था जब हमारे पास जीवन-यापन का एक मात्र साधन चाक ही था लेकिन बदलते समय के साथ चाक की रफ्तार अब बिल्कुल धीमी पड़ गई है. स्थिति यहां तक आ गई है कि इस रोजगार को छोड़कर दूसरे रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है. आलम ये है कि नए पीढ़ी के बच्चे इसे अपना रोजगार बनाना नहीं चाहते. पुरानी बातों को यादकर हरिअन्धी गांव निवासी अनिल पंडित ने बताया कि एक समय था जब त्योहार में सभी व्यक्ति को मिट्टी से बने दिए की जरूरत पड़ती थी लेकिन आज किसी को इसकी आवश्यकता ही नहीं है. एक दशक पूर्व मिट्टी के बने घड़े, सुराही, कुल्हड़, बर्त्तन आदि का प्रयोग खूब होता था और बाजार में इसकी जबरदस्त मांग को देखते हुए घर के सभी सदस्य इस वतावसाय मे जुड़े रहते थे. इससे इतनी आमदनी हो जाती थी कि चाक की रफ्तार की तरह जिंदगी की गाड़ी रफ्तार से चल रही थी. लेकिन एकाएक प्लास्टिक के प्रयोग ने सबकुछ चौपट करके रख दिया. विशेषकर दीपावली में चाइनीज लाइटों नें दीपक के निर्माण पर ही ग्रहण लगा दिया. यही स्थिति अगर बरकरार रहा तो वह दिन दूर नहीं जब इस व्यवसाय से विमुख होकर कुम्भकार दूसरी व्यवसाय को अपनाने को मजबूर हो जाएंगे. वहीं मिट्टी का बर्तन इतिहास बनकर रह जाएगा.