गिद्धौर (अजित कुमार यादव): नवरात्रा के आज रविवार को महा अष्टमी दिन गिद्धौर दुर्गा मंदिर परिसर में दर्शन एवं पूजा के लिए श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ शारदीय नवरात्र के आठवें दिन आज भक्ति की देवी मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा अर्चना की गई नवरात्रा के इस सबसे बड़े दिन महा अष्टमी पर नव दुर्गा की आठवीं शक्ति महागौरी की पूजा की जाती है 9 दिनों की पूजा में आज का दिन बेहद खास माना जाता है गिद्धौर प्रखंड सहित अन्य प्रखंडों से श्रद्धालुओं द्वारा महा अष्टमी पूजा में खासा उत्साह आज देखा गया घरों में पूजा पाठ के साथ ही दुर्गा मंदिरों में महिलाओं की भारी भीड़ देखी गई सुबह से ही दंडवत देते महिलाएं पुरुष बच्चे माता की आराधना में देखा गया जबकि देर शाम तक पूजा-अर्चना का सिलसिला जारी रहेगा महिलाएं महाष्टमी के दौरान उपवास पर रह कर पूजा अर्चना करते नजर आए वही बताते चले कि बुजुर्गों के द्वारा काली है कलकत्ते की, दुर्गा है पतसंडे की’, ये सदियों पुरानी कहावत आज भी चली आ रही है। जिले के गिद्धौर के पतसंडा की माँ दुर्गा की आराधना का वर्णन शास्त्रों में शक्ति पीठ के रूप में वर्णित है। इस मंदिर का दुर्गा पूजा कई शताब्दियों से बहुचर्चित रहा है। उलाई तथा नागी नदी तट के संगम पर बने इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि उलाई और नागी के संगम में स्नान करने के उपरांत माता के मंदिर में हरिवंश पुराण का श्रवण करने से नि:संतान दंपत्ति को गुणवान पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। लगभग चार सौ साल पहले गिद्धौर रियासत के चंदेल राजा जय मंगल सिंह द्वारा स्थापित यह दुर्गा मंदिर सूबे में अपना विशेष स्थान रखता है। इस इलाके के लोग यहां के दशहरे को देखने बंगाल, झारखंड सहित अन्य राज्यों से भी पहुंचते हैं। पुरानी परंपरा व पौराणिक विधान के अनुरूप पूजा संपादन आज भी यहां देखने को मिलता है। नवरात्रि के दौरान हर रोज यहां हजारों श्रद्धालु श्रद्धा व अखंड एवं विश्वास के साथ उलाई नदी में स्नान कर दंडवत देते हुए मां दुर्गा के मंदिर के द्वार पर पहुंचकर पूजा अर्चना करते हुए नजर आते हैं और मां दुर्गा से मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं एवं मन्नते मांगते हैं जबकि दशहरा के अवसर पर यहां भव्य मेला भी लगता है । कहा जाता है कि राजवाड़े के जमाने में मेला के दौरान गिद्धौर महाराजा दर्शन के लिए आम-आवाम के बीच उपस्थित होते थे। इस मौके पर ब्रिटिश राज के बड़े बड़े अधिकारी भी महाराजा के मेहमान हुआ करते थे। जो मेला में भी शिरकत करते थे। कालांतर में इस मेले को चंदेल वंश के उत्तराधिकारियों ने जनता को सुपुर्द कर दिया, तब से लेकर आज तक पौराणिक परंपरा के अनुसार दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा कमेटी के द्वारा इस मंदिर में पूजा का आयोजन कराया जाता है।