आधुनिक दौर के चकाचौंध में भी मिट्टी के दीये बनाकर आज भी अपनी परंपरा को जीवित रखे हुए है कुम्हार समाज

जमुई
जनादेश न्यूज़ जमुई
जमुई( ब्यूरो अजीत कुमार ): दीयों के पर्व दीपावली का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस पर्व का अपना ही एक महत्व है। लोग दीपावली से पूर्व ही अपने घरों और दुकानों की साफ सफाई में लग जाते हैं और दीपावली के दिन माता लक्ष्मी एवं गणेश की पूजा पूरे विधि विधान से होती है। इस दिन अपने घरों और दुकानों को मिट्टी के दिए से सजाने की परंपरा रही है। मिट्टी के दीये एवं बर्तन को शुभ माना जाता रहा है। परंतु आज के आधुनिक दौर में इन दीयों का स्थान चाइनीज दीयों ने हथिया लिया है। इससे इन पारंपरिक मिट्टी के दीयों के अस्तित्व पर खतरा बढ़ गया है और इससे जुड़े कुम्हार समाज के लोगों पर रोजी रोटी की समस्या आन पड़ी है। उनके पारंपरिक व्यवसाय पर खतरे का बादल मंडराने लगा है। इस संबंध में जब हमारी मुलाकत 87 वर्षीय वयोवृद्ध अर्जुन पंडित से हुयी उनका दर्द उनकी जुवां पर छलक पड़ा । उनके अनुसार आज की नयी पीढ़ी ने आधुनिकता के इस चकाचौंध में अपनी संस्कृति को ही भुला दिया है नई पीढ़ी पारंपरिक व्यवसाय को घाटे का सौदा मान कर उतना महत्व नहीं दे रहे है शायद मेरे बाद बाद इस व्यवसाय की अगली पीढ़ी ना करे।वही इस संबंध बात करते हुए गोरेलाल पंडित,काटीमन पंडित बताते हैं कि मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने से लेकर उसे पकाने का खर्च काफी महंगा हो गया है। इसके बाद यदि इसमें मजदूरी जोड़ी जाय तो यह और भी महंगा हो जाता है। फिर आज के दौर में इसकी मांग इतनी कम है कि यह पेशा अलाभकारी हो गया है। फिर भी हमारा समाज अपनी पुस्तैनी परंपरा को जीवित रखने के लिए इससे जुड़ा है। ये बताते हैं की इसकी तैयारी महिनों पुर्व शुरु कर देतें है मिट्टी को गुथना और कच्चे माल को तैयार कर सुखा कर इसे गौयठे में ड़ाल कर उपर से मिट्टी का लेप लगा कर अग्नी प्रज्वलित कर इसके पकने का इंतजार करतें हैं तब जाकर इसे दीपावली में बेचने बाज़ार जाते हैं इनके द्वारा दीए के साथ साथ मिट्टी के खिलौने भी तैयार किया जाता है फिर भी उतनी आमदनी नहीं हो पाती है ये बताते है की हमारे बनाए खिलौने को उतना महत्व नहीं मिलता जितना चायनीज लारी,दीए और खिलौने को मिलता है फिर भी पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को जीवित रखने का काम कर रहें हैं।अन्य दिनो में हम मजदूरी या अन्य कार्य कर के अपना भरण पोषण करतें हैं । मै जनादेश न्यूज़ के माध्यम से इनके जज्बे को सलाम करता हूँ और आपने पाठकों के उम्मीद करता हूँ की इस दीपावली को अपनी सभ्यता संस्कृति और परंपरा के साथ मनाएंगें ताकी फिर किसी 89 वर्षीय बुजुर्ग को ये ना कहना पड़े की मेरी मृत्यु के बाद इस परंपरा को आगे बढाने बाला कोई ना होगा।