अभ्रख का अवैध खनन से सरकार को करोड़ों रुपया का लग रहा चूना

नवादा

जनादेश न्यूज़ नेटवर्क

रजौली (नवादा) थाना क्षेत्र के सवैयाटांड़ पंचायत में अवैध तरीके से अभ्रख का खनन जारी है।लाखों प्रयासों के बावजूद अवैध खनन पर विराम नहीं लग रहा है।आलम यह है कि माफिया पहाड़ों को चीर कानून को रंगते हुए मालामाल हो रहे हैं।मजदूरों के सहयोग से अभ्रख का खनन किया जा रहा है।अपेक्षित कार्रवाई नहीं होने के चलते खनन माफिया का हौसला बुलंद है। छापेमारी कर अधिकारियों व सुरक्षाबलों के वापस लौटते ही खनन कार्य शुरू हो जाता है।जेसीबी मशीन से अभ्रख के पहाड़ों को खुद आ जाता है और उसके बाद उसे मजदूर के सहयोग से शक्तिमान ट्रक में लादकर अभ्रख को बाजार पहुंचाया जाता है।जानकारों की माने तो एक शक्तिमान वाहन पर 8 टन अभ्रख लोड होता है।जिसकी बाजार कीमत करीब 2 लाख रुपए हैं। जानकारों का कहना है कि इस क्षेत्र में वन विभाग की भूमि पर अवैध रूप से अभ्रख का खनन इतना होता है कि प्रतिदिन 50 लाख और महीने में लगभग 15 करोड़ रुपए का सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है। वन विभाग और पुलिस कई बार अवैध खनन को रोकने के लिए बड़े स्तर पर छापेमारी की कई गाड़ियों को भी पकड़ी गई अभ्रख माफियाओं पर प्राथमिकी भी दर्ज हुआ।लेकिन इसका कोई असर इन लोगों पर नहीं पड़ रहा है।

वन विभाग की भूमि पर दर्जनों जगह पर होते अभ्रख का अवैध खनन

चटकरी स्थित शारदा माइंस,धन कुटवा,लिखलहीया,जोड़ही,ललकी पहाड़ी,टोपा पहाड़ी,सपही पहाड़ी,कोरैया,सेठवा,कड़रुआ आदि कई अवैध अभ्रख माइंस पर बेखौफ होकर कोडरमा और बिहार के कुछ हिस्से के अभ्रख के कारोबारी अवैध रूप से खनन कर रहे हैं।सूत्र के मुताबिक अवैध खनन करने वाले अभ्रख माफिया सरफराज अंसारी,गुड्डू तुरिया,एहसान अंसारी,पिंटू कुमार,रमेश यादव सहित दर्जनों लोग शामिल है।

ऐसी बेबसी कि लोग अपनों की मौत पर भी आंसू नहीं बहाते 

ऐसी बेबसी कि लोग अपनों की मौत पर भी आंसू नहीं बहाते है।ताजुब की बात यह है कि मृतक के परिजन और न ही ग्रामीण कुछ बताने को तैयार होते हैं।जिससे प्रशासन को काफी कठनाई का सामना करना पड़ता है।और मृतक के परिजन को सही मुआवजा नहीं मिल पाता है।

हमेशा होती रही अभ्रख खदानों पर मौतें

इस इलाके में मौत की ऐसी बेबसी है।लोग आंसू भी नहीं बहाते हैं। इसके पहले 20 मई 2015 को कारी माइंस में तीन लोगों की मौत हो गई थी।इस घटना में एक बेटी की मौत पर उस की बुजुर्ग मां ने फांसी लगाकर जान दे दी थी।बेबसी ऐसी बनी है कि वे लोग मौत पर आंसू भी नहीं रह पाते।मजदूर परिवारों को भयभीत किया जाता है कि पुलिस से शिकायत पर पीड़ित परिवार पर हैं मुकदमा हो जाएगा रोजगार भी नहीं दिया जाएगा।लिहाजा,उनके पास अभ्रक माफियाओं की मर्जी मरने के सिवा कोई चारा नहीं बचता। पुलिस के समक्ष भी जुबान नहीं खोलते लिहाजा,ना तो आरोपियों पर कार्रवाई हो पाती है।और ना ही मुआवजा मिल पाता है।